चलोरे भाई ! गंगाजीके तीर
(तर्ज : मिलादो सखी ! श्यामसुंदर... )
चलोरे भाई ! गंगाजीके तीर ।
जहाँ संत बसे रणधीर, मुक्त करे रघुवीर ।।टेके।।
संत संगत जहँ वहँ घड पावे, बरसे ज्ञानको नीर ।।१।।
छोड़ रही चिंता घट-घरकी, सदा रखो मन धीर ।।२।।
संगम - धार बहे त्रिकुटीमें, न्हावे जोगि समीर ।।३।।
भ्रमर गुंफामें संत-अखाड़ा दर्श करो बनबीर ।।४।।
आतम -लिंग बसे हिरदेमो, पहिरो स्वाँस को चीर ।।५।।
तुकड्यादास कहे गंगाको, बहे बहाओ शरीर ।।६।।