लागी है मधुर तोरि बन्सि । कन्हैया !
(तर्ज : मिलादो सखी ! श्यामसुंदर.... )
लागी है मधुर तोरि बन्सि । कन्हैया ! ।।टेक।।
मैं जल भरन जात जमुनापे, भोर सुनत भई प्यासी ।।१।।
जित देखूँ उत बन्सि सुहावे, चकित होत मैं तो हाँसी ।।२।।
आँखमें बन्सी, कानमें बन्सी दसदिस भासत बन्सी ।।३।।
तुकड्यादास बजत अनहत जो, तिहिमें भयिहूँ उदासी ।।४।।