अधार मेरे प्यारेका, मुझको अधार

(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान...)
अधार मेरे प्यारेका, मुझको अधार  ।।टेक।।
अंधेको जैसे लकड़ी - सहारा, सदगुरु   तारनहार ।।१।।
बाणिनसे मैं कछु नहिं गाऊँ, सद्गुरु -किरपा यार ! ।।२।।
सतसंगत कबहू नहिं कीन्ही, बैठे घनके   मार ।।३।।
भवसागर यह उससे छूटा, वहि मेरा दिलदार  ।।४।।
छोड़ जगतकी लाज समाना, तुकड्या शरण पधार ।।५।।