अजि ! भरपूर चली भवधारा
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान...)
अजि ! भरपूर चली भवधारा ।।टेक।।
काम-क्रोधरूप लहरे मारे बासरिका झनकारा ।।१।।
प्रवृत्त-निवृत्त दोनों थडियाँ, बीच सकल परिवारा ।।२।।
पार किसे नहिं जाने देवे, बिरला जा गुरु प्यारा ।।३।।
पीर पड़े पैगंबर लटके, नहिं किसकाभी गुजारा ।।४।।
तुकड्यादास कहे लिन होकर, गुरुजी नाम सिधारा ।।५।।