वहि गुरु तारक समझो भाई !
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान... )
वहि गुरु तारक समझो भाई ! ।।टेक।।
निरस गये संदेह हृदयके, टूटी जगत - दूआई ।।१।।
आप-स्वरूप जगत में देखे, मैं अरू तु कछु नाहीं ।।२।।
ताल सूरबिन भजन जिसीका, अंतर तार लगाई ।।३।।
आपहि गावे आपहि हाँसे, दूजापन जलवाई ।।४।।
तुकड्या कहे जिसे ज्ञान शरण है, ज्ञानन ध्यान भुलाई ।।५।।