रे ! मोरा साँई भला मतवाला
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान... )
रे ! मोरा साँई भला मतवाला ।।टेक।।
जिसपर प्रीत करे इकबारा, दुखसे करत निराला ।।१।।
बीन प्रीती परतीत न देवे, एकहि भाव - उजाला ।।२।।
भीतरसो खूब रंग रँगाकर, बाहर दे मृगछाला ।।३।।
तुलसीमाल दिखत देखनको, उसहिसे भव कट डाला ।।४।।
तुकड्यादास कहे प्रित राखो, प्रीतम मिलत रसीला ।।५।।