रे मोरे साँई ! सुधी ले हमारी

(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान... )
रे मोरे साँई ! सुधी ले हमारी ।
नहिं तो लाज गई हारी ।।टेक।।
जबसे भुल्यो तुमको रघुनंदन । तबसे कुमति भई सारी ।।१।।
भूल गयो    अपने    देशनवा । हूँ    परदेश     भिखारी ।।२।।
तुकड्या बालक दो कर जोरे । अब तो लाज रख मोरी ।।३।।