तबलग सुमरो माला ।
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान...)
तबलग सुमरो माला । जब लाहर नहि भूला ।।टेक।।
जागृत भास टले नहिं जबलौ तबलौ कर्म कपाला ।।१।।
स्वप्न लखे नहि जबलौ मनमों, तबलौ भजहि कृपाला ।।२।।
सुषुपतको जब नहिं पहिचानो, तबलो ज्ञान -उजाला ।।३।।
तुरियाको साक्षी नहिं जब जो, गुरु - किरपा बिन भूला ।।४।।
तुकड्यादास कहे जब छुट्यो भेद, तहीं सुख डोला ।।५।।