आदहिसे रख धीरा
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान...)
आदहिसे रख धीरा । तब बन आतम - शूरा ।।टेक।।
पहले जाय कनक-सुख सारो, काहुसे रहत अधीरा ? ।।१।।
दूजो शालदुशालों भूल्यो, रहि अँगिया मृगछाला ।।२।।
तीजो जात प्रीत लोगनकी, सुन गारी घरघोरा ।।३।।
चौथे हरत दुःख विषयनका, रहे अंतरधुन प्यारा ।।४।।
तुकड्यादास कहे तब साधे, साधु-पद असबीरा ।।५।।