रे मन ! मान कहानी

(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान... )
रे मन ! मान कहानी ।।टेक।।
तीरथ जाकर पियो न तीरथ, जो मुख झूठ बखानी ।।१।।
देवल जाकर दिलको न धोया, जौं प्रभुप्रीत न जानी ।।२।।
गंगाजल जा कियो स्नाना, जौं करि कपट-निशानी ।।३।।
आश्रम जा सतसंग न कीन्‍हा, जौं भटके घर बानी ।।४।।
यह सब योग करे नर जो घर, वहि घर तीरथ दानी ।।५।।
तुकड्यादास कहे घुम आया, दीन-दया नहिं जानी ।।६।।