दया हो हमपर भी भगवान
(तर्ज : सुभांग तेरी कुदरतकी है शान...)
दया हो हमपर भी भगवान ।।टेक।।
आस टुट्यो तन बेद-बचनसे, फँस गयो जान सुजान ।।१।।
निर्मल जल जनबीच न पावे, दे मोहे प्रेम - पियान ।।२।।
भटक रहा दिनरात जगतमें, न मिट्यो तन - अभिमान ।।३।।
दे सतसंग चरण का तेरे, तुकड्या बाल अजान ।।४।।