साँई ! तेरो बना रहे दरबार
(तर्ज : सुभांन तेरी कुदरतकी है शान...)
साँई ! तेरो बना रहे दरबार । हरदम बना रहे दरबार ।।टेक।।
ज्ञानकी झडियामें अनुभव -पानी, अरु सतसंगकी धार ।।१।।
हृदय-कमलमों शंकर - बासा, झिलमिल ज्योत उजार ।।२।।
कभु नहिं देखा सुन्न महलको, झलके प्रेम - फुँवार ।।३।।
तुकड्यादास कहे क्या कहिये ? अविगतकी बलहार ।।४।।