कैसे जानूं प्रभूको अँधारी पडी

(तर्ज : मेरी सुरत गगन में जाय रही ....)
कैसे जानूं प्रभूको अँधारी पडी ।
अंधारी पड़ी, सीस माया जडी ।।टेक।।
उस दरबार बिकट जाना है, कहाँपर जाकर खोलूँ कडी ।।१।।
जमुना निर बिचमें बहता है, मच्छ  -  मगरकी मार बडी ।।२।।
दस दरवाजे ताला लागा, एकएकपर     चौकि     खड़ी ।।३।।
मगजलरूप मोरी नैया भई है, तुकड्याकी बातें वहाँहि नडी ।।४।।