कैसी चमका रही है नकल साजसे
(तर्ज : मेरी सुरत गगन में जाय रही ..... )
कैसी चमका रही है नकल साजसे ।
नकल साजसे, देखलूँ आजसे ।।टेक।।
सब दुनिया भरपूर उसीमें, भूल गये असली काजसे ।।१।।
कोउ न देखें अंदरका पट, बाहर साफसफे दाजसे ।।२।।
दसवें दुवारे बैठ रही है, अँखियोंसे देखे वह दिल-बाजसे ।।३।।
कहता है तुकड्या अनुभवके बिन, पंडित पढते भये है पिसे ।।४।।