सारी खित्लकतमें तेरी मजा हो रही

(तर्ज : मेरी सूरत गगन में जाथ रही...)
सारी खित्लकतमें तेरी मजा हो रही ।
मजा हो रही वह कजा रो रही ।।टेक।।
तनमें तू जबतक बास करेगा, तबतक तन बह भली गो रही ।।१।।
जहाँतक तेरा यह बना नूर होवे, तहाँतकही घटके भितर सोरही ।।२।।
जोगीमें तूही औ भोगीमें तूही, जिस उसमें तूही रजा दो रही ।।३।।
कहता वह तुकड्या तुम्हारा अधारा, तबतक यह गाना सुनाऊँ सही ।।४।।