कहाँ देखूँ, कहाँ देखूँ, कहाँ देखूँ प्रभू मेरा ?
(तर्ज : अगर है ज्ञालको पाना... )
कहाँ देखूँ, कहाँ देखूँ, कहाँ देखूँ प्रभू मेरा ? ।
वक्त यह जा रहा पलपल, ढूँढा जाकर जगत् सारा ।।टेक।।
पूछा कई संतलोगोंसे, बड़े आश्रम तथा बनमें ।
पता उसका नहीं किसको, कहे सब हमसे वह न्यारा ।।१।।
कहे चेला न हम देखा, कहे गुरुजी न हम देखा ।
लगाऊँ खोजभी कैसे ? नजर आता है अँधियारा ।।२।।
न मक्का है न है बुतखाँ, नहीं यहाँपे नहीं वहाँपे ।
खड़ा मौजूद है सबमें, यही मेरा है निर्धारा ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, प्रभू उसको मिला हकमें ।
न जिसको खब्र दुनियाकी, रँगा रँगमें सदा प्यारा ।।४।।