अमर नहीं रहनेकी काया

      (छंद)
अमर नहीं रहनेकी काया, क्यों गफलत रहते बाबा ।
आन खडी अब मौत कफनकी, चले धार बहते बाबा ।।टेक।।
मात पितासे यही चला था, मरना औ जीना बाबा ।
करो फिकर कुछ अंतकालकी, जफन जफन जीना बाबा ।।
इस कायाको कायल करके, कायर क्यों कीना बाबा ।
नहिं रहनेका टुकभी जगत्‌ यह, मायासे बीना बाबा ।।
ताना बाना बुनते बुनते, कफर कुफर छीना बाबा ।।
जन्नतको अब छोडदियो तुम, दोजखको लीना बाबा ।।
रहो हुशार जगतमें आकर, संत बहुत कहते बाबा ।
आन खडी अब मौत कफनकी, चले धार बहते बाबा ।।१।।
बाप मरा जब रोते थे, अब अपनी फिकर करों बाबा ।
क्यों फँसते हो झूठ मायामों, अपना जिकर करो बाबा ।।
नाहक धूप चढ़ाते हो क्यों ? ठंडी लहर धरो बाबा ।
जिस खालिकने पैदा कीन्‍हा, उसकी नजर परो बाबा ।।
बाज रहा सिर डंका तुम्हरे, अजलफेर बिसरो बाबा ।
जा पहुँचो अब लाएल्लाह में, याद करो मिसरो बाबा ।।
झटपट सुधरो कारबारको, कहाँतक यह सहते बाबा ।
आन खड़ी अब मौत कफनकी, चले धार बहते बाबा ! ।।२।।
सीनेसे अब दिलको काटो, रणमें यार धरो बाबा ।
फँसी हुई नौका कीचड़में, जलसे पार करो बाबा ।।
उलट कराकर नैना अपनी, भवसागर घसरो बाबा ।
मायाके सब गोत बिसरकर, खिलकतमें पसरो बाबा ।।
वली हमारे आडकुजी है, जीते चरण परो बाबा ।
तुकड्याबालक दो कर जोरत, भजते भवहि हरो बाबा ।।
साथिदार हो हमरे तुमही, क्यों दोजख रहते बाबा ।
आन खडी अब मौत कफनकी, चले धार बहते   बाबा ।।३।।