तेरी क्या कहूँ सूरत यार !
(तर्ज: तू तो उड़ता पंछी यार...)
तेरी क्या कहूँ सूरत यार ! तू तो सब दुनियाके पार ।।टेक।।
घटके अंटर लगा बगीचा, देख पड़े झकदार ।
सप्त चक्रका जंत्र लगा है, चले अखंडित धार।।१।।
इडा पिंगला अमृत सींचे, रहे जोगि गुलजार ।
ओहँ सोहँ पंखा हरदम, लगा रहे यह तार ।।२।।
दश नादोंका बाजा अंदर, बजे घनन घड़ियार ।
सूरज चंद्र बिन गिरे उज़ारा, पड़े रोषनी पार ।।३।।
तुकड्यादास कहे रूप तेरो, है वर्णन के पार ।
भेद बेद भी जान न पावे, जाने संत नियार ।।४।।