तेरी कौन कहावे महिमा
(तर्ज : वारी जाऊँरे साँवरियाँ... )
तेरी कौन कहावे महिमा, निगमभी ना कहा रे ।।टेक।।
शेष बिचारा कहते हारा, शास्त्र बजावत डंका हारा ।
बेद कहे नेती गुण तेरा वाहवा रे ।।१।।
जोगी बनमें करे समाधी, तेरी महिमा उन्हें न साधी ।
व्याधि लगाके संग, रंग दे दीन बहारे ।।२।।
औरनकी क्या कथा कहाऊँ, माया-पार नहीं वह पाऊँ ।
मन बुध्दीके पार हरी ! रूप है तुम्हारे ।।३।।
जो सत्-संगत जाय बिचारे, वही तुम्हारा रूप निहारे ।
तुकड्यादास कहे, भजरे भज राम पियारे ।।४।।