इस जगमें कोइ न साथी है

(तर्ज: दर्शन बिन जियरा तरसे.... )
इस जगमें कोइ न साथी है ।।टेक।।
सोच समझकर अपने हित को । बख्त घडी पल जाती है ।।१।।
सब मतलब के गर्ज बताते । आखिर  होवत   घाती   है ।।२।।
जबतक पैसा तबतक नाता । धनहिन होत   फजीती है ।।३।।
तुकड्यादास कहे बिन हरिके । कोउ न शांति सुहाती है ।।४।।