कुफरको हटा अभी प्यारे !

(तर्ज: संगत संतनकी करते... )
कुफरको हटा अभी प्यारे ! देख दिलदार पास तेरे ।।टेक।।
काशी मथुरा क्यों जाता है? तीरथ क्यों तारे?।
मन मैला नहि जबतक धोवे, कहीं न सुख है रे ।।१।।
चार धाममें उमर गुजारी, नहि प्रभु पाया रे ।
दिलका कपट हटा संगतसे, प्रभु प्रगटाया रे।।२।।
बेद, पुराण, कुराण, पढकर, पंडित सब हारे ।
इस मायाके झगडे म्याने, बह   जातें   सारे ।।३।।
कहता तुकड्या सद्गुरुके बिन, कौन दुजो तारे ? ।
उनकी दीक्षा लेकर भाई ! रटो नाम   जा रें ।।४।।