वही है संत पुरा भाई ! आपमें अपना रूप पाई
(तर्ज: संगत संतनकी करे... )
वही है संत पुरा भाई ! आपमें अपना रूप पाई ।।टेक।।
परनारी और परधन देखत, दूरसे घबराई ।
दुनियामें क्या हालचाल है, उसे खबर नाही ।।१।।
अस्ती भाति प्रीय रूपमें, रँगके धुन पाई ।
तनका भेद - भाव सब भूले, चित अंदर लाई ।।२।।
सत्य बचन नित कहे जबाँसे, होवे सचताही ।
काम क्रोधको वशमें कीन्हा, नहि लालच कोई ।।३।।
राजा - रंक समान उसीको, दूजेपन नाही ।
सब ऋतुओंमें एकसरीखे, निरस - हरसमाँही ।।४।।
कहता तुकड्या वही गुरु कर, मोक्ष मिले भाई ! ।
उसकी संगत सब दुनियाको, होवे सुखदायी ।।५।।