तेरी लिला प्रभूजी ! मुझसे कही न जावे

(तर्ज: उँचा मकान तेरा...)
तेरी लिला प्रभूजी ! मुझसे कही न जावे ।
बेहद है समझना, इस दृष्टिमें न आवे ।।टेक।।
क्योंकर जगत्‌ बनाया, यह कौन जानता है ? ।
खूबी तेरी   निराली,    तेरेहि    मस्त    पावे ।।१।।
हर एक जी निराले, हैं शान-मान ढँगसे ।
अपनाहि मत लगावे, किसका कहा न भावे ।।२।।
कर्तव्य भी निराले, लड़ते है योंहि जगसे ।
तुकड्या कहे गुरूबिन, नहि बेद  जान  पावे ।।३।।