क्यों सो रहा दिवाने ! उमरी सभी गमाता

(तर्ज : उँचा मकान तेरा...)
क्यों सो रहा दिवाने ! उमरी सभी गमाता ।
गोते लगाके भ्रममें, फिर काल -घर भ्रमाता ।।टेक।।
सुध ले जरा गुरुकी, पुछ ग्यानकी निशानी ।
प्रभु है भरा    सभीमें, ये जान उनसे  बाता ।।१।।
एकांत बैठकरके, कर स्थीर चित्त अपना ।
दृष्टी बनाके उलटी, आनंद क्यों न   पाता ? ।।२।।
दस - नादकी मधुरी, बजती है एकतारी ।
अलमस्त रंग पाता, वह प्रेम क्यों न छाता ? ।।३।।
तुकड्या कहे गुरुकी, जाके शरणमें, भाई ! ।
पावन बनाके जीको, उध्दार क्यों न पाता ? ।।४।।