ईश्वर न मानता हूँ, तो मैं बुराहि होगा
(तर्ज: उँचा मकान तेरा...)
ईश्वर न मानता हूँ, तो मैं बुराहि होगा ।
हंकारके जलनमें, मेरा चुराहि होगा ।।टेक।।
दुनिया भटक भटककर, नहि सौख्य-शांति पाई ।
कुछ तो कसूर मेरा, मुझमें धराहि होगा ।।१।।
ना प्रेमसे निभाया, जीवन किसी गरिबका ।
तो मैंने जीके आखिर, पातक कराहि होगा ।।२।।
नहि नेकिसे चला मैं, धनमें लगाया मनको ।
लुटा गरीब जनको, जमसे घिराही होगा ।।३।।
कुछ संतका माना, विषयोंमे था दीवाना ।
तुकड्या कहे यह बेशक, मेरा गुन्हा हि होगा ।।४।।