ऐ नाथ ! सुन हमारा, घर दूर्जनोंनें लूटा

(तर्ज: उँचा मकान तेरा...)
ऐ नाथ ! सुन हमारा, घर दूर्जनोंनें लूटा ।
कबसे सुना रहा हुँ, कफसे अवाज टूटा ।।टेक।।
मालिक है तू जगत्‌का, इनसाफ कर दे पेरा ।
कितना अभी अभी सहूँ मैं ? सहनेका वक्त खूटा ।।१।।
तूने अगर बनाई, दुनियाकी यह बगाई ।
फिर पाप क्यों बना है ? हमरा नशीब फूटा ।।२।।
पल नाम मुख न आवे, विषयोंमे मन लुभावे ।
साथी न कोई आवे, जब काल   दे   चपेटा ।।३।।
काया बिखर रही है, तुमको खबर नही है ।
तुकड्या कहे यह सुध लो, तेरी कसम, न झूठा ।।४।।