आकर मायामें भटके, करके खुले न पट घटके ।।

(तर्ज : जपका अजब तड़ाका बे... )
आकर मायामें भटके, करके खुले न पट घटके ।। टेक ।।

विषय लोभ और क्रोध धारकर, जमघर जा झटके |
व्दैैत बढाया तनमों अपने, खूब भये नटके ।। १ ।।

क्या कहना सद्गुरुकी बातें, भवसागर सटके ।
काम क्रोध को मार-मारकर, असि-पद ले पटके ।। २ ।।

बालापन तो खेल गमायो, जा उसमें रटके ।
तारुणपनमों विषय भ्रमाया, सूत-मित में लटके ।। ३ ।।

कहता तुकड्या बुढ़ेपन में, देही करे खटके ।
झूठी माया, झूठ पसारा, जमके घर अटके ।। ४ ।।