राम सबमें है भरा फिर क्यों ढँढोलें जातको ?
(तर्ज : क्यों नही देते हो दर्शन...)
राम सबमें है भरा फिर क्यों ढँढोलें जातको ?।।टेक।।
नर! जन्म सबका एक है, उनके स्वरूप अनेक है ।
नाम यदि कोई लाख है, पर भेद क्यों सच बातकों ?।।१।।
रंक-राजा जोगि-भोगी, रोगि अरु एक चोरभी ।
बाहरीका रंग है पर, आतमा सम साथकों ।।२।।
जीव -सुष्टीकीं बनाई, वर्ण अरु यह जात है ।
ढूँढलों सत्-संगसे, नाता, इन्हें क्या नातकों ? ।।३।।
कहत तुकड्या योगियोंकी, जात न्यारी हैं सदा ।
वे चाहते हैं शुध्द दिल, अरु ब्रह्म सबकी भाँतिकों ।।४।।