झूठ इस तनका अभिमाना, धरो निज मारग अब जाना

(तर्ज : जमका अजब तडाका बे... )

झूठ इस तनका अभिमाना, धरो निज मारग अब जाना ।। टेक  ।।

देह-सौख्य जो साज समझकर, जन्म मरण में डूला।
अन्तकाल शिर मार पड़े जब जमघर भोगे धूला ।। १ ।।

साक्षी होकर सब इंद्रिय का, मृगजल में क्यों भूला।
अपनी मौज को देख देखकर, दुसरेमें जा झूला ।।२।।

मेरा कर-कर उमर गुजारी, नरक पडा करछूला।
बारबार जम मारत जूते, गटको खावत खूला ।। ३ ।।

कहता तुकड्या दास गुरुका, नाम बिना नर घूला ।
आप रुप नहिं जानत तबलौ, चला जलाते चुला ।। ४ ।।