ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है अंधेरे बनमें ?
(तर्ज: पिया मिलनके काज आज...)
ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है अंधेरे बनमें ? ।
गरज रहा है अवाज सिरपे, सोच जरा मनमें ।।टेक।।
झूठ पसारा देखत भूला, नाश होय छिनमें ।
आया वैसा चला जायेगा, चित्त देता क्यों धनमें ?।।१।।
देखत देखत कई मरगये, मायाके बनमें ।
काल-शेर डखरे सिर ऊपर, फाड खायगा पलमें ।।२।।
गुरुनामकी लगाले दिवटी, ग्यान-शस्त्र ले करमें ।
तुकड्यादास कहे, चल मारग, चढ जा ऊँचे घरमें ।।३।।