क्रोध है जिनमें भरा, उन्हें बोधका नहि योग है

(तर्ज : मानले कहतना हमारा...)
क्रोध है जिनमें भरा, उन्हें बोधका नहि योग है ।।टेक।।
लीनता जिसपासमें, वहि बोधकी है आसमें ।
तो मिराते गर्व हैं, उन्हें बोधका नहि योग है ।।१।।
संगती जो पायगा, वहि प्रेम-भक्ती छायगा ।
जो लोभ करते देहका, उन्हें बोधका नहि योग है ।।२।।
धाम तीरथ न्हायगा, वहि पाक दिल बनवायगा ।
जो खुदीकी तानते, उन्हें बोधका नहि योग है ।।३।।
कहत तुकड्या छोड यह, मैं हूँ बड़ा कहना नहीं  ।
जो न नीचे सिर झुकें, उन्हें बोधका नहि योग है ।।४।।