सब जग स्वारथका भाई ! तनका

(तर्ज : भले वेदांत पछाने ही...)
सब जग स्वारथका भाई ! तनका साथि नही कोई ।।टेक।।
साधु-संतने अमर कमाया, जाना यदुराई ।
नाम जपाकर घटके अंदर, दुनियाहि    दुराई ।।१।।
सकल जगत्‌का कर्ता स्वामी, नहि है इनमाँही ।
वह तो सबमें रहके निराला, बिरला लख पाई।।२।।
इश्वरसे मन जोड़ो अपना, छोडो बहिराई ।
नर-तन चीज करो इसहीसे, यहि साथी आई ।।३।।
कहता तुकड्या, अलख निरंजन, संतोंने गाई ।
उनका अनुभव पाओ बंदे ! फेर जनम नाही ।।४।।