जौहरी होवन को चटके, आखरी फूगे से लटके

(तर्ज : जमका अजब तडाका बे... )
जौहरी होवन को चटके, आखरी फूगे से लटके ।। टेक ।।

खेचर भूचर  मुद्राधारी, लाल रंगको पाई ।
काम-क्रोध में लपटे जाकर, बहीरंग को साई ।। १ ।।

लोग-बाग को वही दिखाकर, दुनियाको झुकवाई ।
द्रव्य पछाडा शिष्य बनाकर, नर्क निशान कमाई ।। २ ।।

पूरक कुंभक खैच खैच के, सारी उमर गमाई।
तनपर भार लियो माला का, जपने फुर्सत नाही ।। ३ ।।

कहता तुकड्या खोल पिटारी, अंदर लाल बिठाई ।।
संत पुरा एक जोहरी भाई, उसी चरणनपर जाई ।। ४ ।।