जग झुकता तो झुकवा दे, हरिके गुनमें भुकवा दे
(तर्ज:भले वेदांत पछाने हो...)
जग झुकता तो झुकवा दे, हरिके गुनमें भुकवा दे ।।टेक।।
क्या करना है मठ-मढीयोंका ? ले मत, ढकला दे ।
जैसे आये वैसे जगमें, रहना सिखला दे ।।१।।
हर्ष-शोक अरु भयको सारे, घरसे हकला दे ।
लाथ मारकर लोभ-दंभको, मनसे निकला दे ।।२।।
ग्यान-ध्यानकी नीती प्यारे ! जी को सिखला दे ।
जगको बतला दे, पर उसके - माथे मत लादे ।।३।।
कहता तुकड्या हरी-नाममें, जी को रँगवा दे ।
मत छोड़े आठों घड़ियोंमें, सबको गुंगवा दे ।।४।।