दिन जाय रहे, दिन जाय रहे

(तर्ज : गुरु ! तुमहि तो हो...)
दिन जाय रहे, दिन जाय रहे । दिन जाय रहे, फिरके नावे ।।टेक।।
बालापन सब खेल गमावे, तारूण विषयनमें खोवे ।।१।।
बुढेपन फिरसे गप छोडे, भजन बने नहिं मन भावे ।।२।।
आये वैसे मरे जगतमें, जमके  फिर    डंडे    खावे ।।३।।
तुकड्यादास कहे, क्या कीन्‍हा ? आये जैसे चले जावे ।।४।।