साहबको रखले राजी, घरके पाजी दूर कर
(तर्ज: ना छेडो गाली दूंगी. . . )
साहबको रखले राजी, घरके पाजी दूर कर ।।टेक।।
इस पाजीने सुन भाई ! जो चढ़े उन्हें गिरवाई ।
साधूकी नाव डुबाई, इससे मनको मार कर ।।१।।
पाजी जब घरमें आया, तब सारा भेद उठाया ।
जो अमर तत्व भुलवाया, ना हो राजी, दूर कर ।।२।।
कहे तुकड्या, राम सहारा, दे जीवको मरते थारा ।
उस बिना नही सुख यारा ! मन उसमेंही चूर कर ।।३।।