क्या साहबकी चतुराई, मुरदा पाई चेतनाई
(तर्ज : ना छेडो गाली दूंगी .....)
क्या साहबकी चतुराई, मुरदा पाई चेतनाई ।।टेक।।
अंधेने देखा प्यारा, सुन रहा बधीर नगारा ।
खुब लंगड़ा नाचनहारा, थूटा बाजेको बजाई ।।१।।
गूँगेने गाना गाया, मुरदेने मन बहलाया ।
कुटियाने मान डुलाया, अँधियाँ छाई रोषनाई ।।२।।
मुरदोंने श्काम सजाया, मुरदोंका खेल मचाया ।
कहे तुकड्या साहब पाया, रँग जोगीने यह रँगाई ।।३।।