ऐ साधू ! कया क्या पाया, खोकर
(तर्ज : ना छेडो गाली दूंगी... )
ऐ साधू ! कया क्या पाया, खोकर माया क्या किया ? ।।टेक।।
घरबार खुशीसे छोडा, कुटियामें दिलको जोडा ।
आशा मनशामें दौडा, पीछे पाया क्या किया ? ।।१।।
खुब शास्त्र पोथियाँ बाची, बस बात बनाता साची ।
है लगी लोभकी फांसी, आखिर काया क्या किया ? ।।२।।
सब तनमें बभुत रमाई, मन अंदर विषय समाई ।
चित काम क्रोध बहिलाई, फिरके भाई ! क्या किया ? ।।३।।
कहे तुकड्या, मत भूले तू, ले रामनाम खूले तू ।
फिर निजानंद झूले तू, नहि तो सारा क्या किया ? ।।४।।