रे ! काहे सिर झुकवावे, मनसँग जावे ढूंढते ?
(तर्ज: ना छेडो गाली दूंगी... )
रे ! काहे सिर झुकवावे, मनसँग जावे ढूंढते ? ।।टेक।।
इस मनको साथि बनाया, फिर जहँ तहँ धोखा खाया ।
दिनरात विषय भरमाया, मत जा माया गूँडते ।।१।।
धर विवेक साथी अपना, कर ग्यान-संग मनमाना ।
तभि प्रभू-रूपको जाना, निर्भय बाना ले फते ।। २।।
कर उलट नैन अपनाले, प्रभु रूप चीन्हकर भोले ! ।
मैं-तू यह दिलसे हरले, सुख तब प्यारे ! दौडते ।।३।।
कहे तुकड्या गिरता तारा, और रूप रूखे है प्यारा ।
अपनेमें आप उजारा, उसमें क्यों ना मूँडते ? ।।४।।