सोच सम्हले चलो फिरके धोखा नही

(तर्ज: मेरी सूरत गगनमों..... )
सोच सम्हले चलो फिरके धोखा नही ।
ठगनी नारीके सँग मत जाओ कोई ।।टेक।।
नारी नही यह-माया भुलारी, सारे जगतको भुलाय रही ।।१।।
तुम्हरी हमारी गति कोन जाने ? ब्रह्मादि नारदपे छाय रही ।।२।।
संत न छोडे नही साधु छोडे, जो जो भये सो समाय रही ।।३।।
तुकड्यादास कहे वहि छूटा, जिसने प्रभू भक्ति दिलसे गही ।।४।।