साँच को क्यों भूला भाई, झूठ की संगत को पाई

(तर्ज : जपका अजब तडाका बे... )
साँच को क्यों भूला भाई, झूठ की संगत को पाई ।। टेक ।।

जाने मनकी बात उसीको, संत सभीही कहते।
भूतबाध को दूर करे जो, उसमें डूबे रहते ।। १ ।।

बहीरंग से नैन लगाकर, अंदर धन को मांगे।
आग लगी विषयन की मनमें परधन देखत जागे।। २ ।।

वेद पुराणा दिनको बाचे, रात भई जब सोवे।
मैं साधू हैं कहते कहते, अंतकाल में भोवे ।। ३ ।।

कला पाठकर नजरबंद में, लोगन को झुकवावे।
कहता तुकड्या दास गुरु का, उसे राम क्या पावे ? ।। ४ ।।