कर सतसंग, सुधार तनूको
(तर्ज : मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही .... )
कर सतसंग, सुधार तनूको ।
और न मारग जगमें मनूको ।।टेक।।
समय गया फिर मिलने न पावे दे ख्याल इसकाहि जीको ।
कितनी घड़ीका है जगमें निवासा ? क्या फेर चाटे धनूको ? ।।१।।
अवघड वह जमघाट पड़ेगा, छूट सके न किसीको ।
सदगुरु-किरपा पलमें तरावे, ब्रह्म-स्वरूप कर जी को ।।२।।
दुर्लभ वह मानूज-जनम है, भाग मिला आदमीको ।
कहे दास तुकड्या, सत्-संग साधे, हरजाय भव दु:ख ताको ।।३।।