अगर रामके दर्शकी हो मनीषा
(तर्ज : दिखादो नजरसे वह जलवा...)
अगर रामके दर्शकी हो मनीषा ।
खबर पूँछलो साधुओंको हमेशा ।।टेक।।
वही पंथ धरलो गुरुको नमाना ।
नहीं काम परता किसीको मनाना ।।१।।
बनो मस्त चरणोंमें जाकर दिवाने ! ।
लगोगे पुरे रंगसे उस निशाने ।।२।।
वही एक धरलो जतन करके दिलमें ।
न छोडो कभीभी मरण आय तनमें ।।३।।
कहे दास तुकड्या, न किसको खबर है ।
उन्हीसे पुछो एक धरके सबर है ।।४।।