काहे नर ! विषय भ्रमाया ? सब
(तर्ज : कायाका पिंजरा डोले.... )
काहे नर ! विषय भ्रमाया ? सब तुच्छ समझ यह माया ।।टेक।।
इस मायाने सुन भाई ! सारे जनको बिगराई ।
पड गई किचड़में काया, सब तुच्छ समझ यह० ।।१।।
कोई बचा न इस मायासे, सब फोल किये कायासे ।
तन-मन पर रोग लगाया, सब तुच्छ समझ यह० ।।२।।
नारद ब्रह्मा भुल पाये, शंकर उसमें लपटाये ।
क्या औरनकी है छाया ? सब तुच्छ समझ यह० ।।३।।
कहे तुकड्या सद्गुरू ध्याओ, सत - संगतमें चित्त लाओ ।
जब बिचार अपना पाया, सब तुच्छ समझ यह० ।।४।।