कुछ सोच समझकर बंदे !

(तर्ज : कायाका पिंजरा डोले...)
कुछ सोच समझकर बंदे ! मत लाग विषयके फंदे ।।टेक।।
मुख बातें बोले मीठी, पर दिलमें यादी खोटी ।
इस मदमें ना हो अंधे, मत लाग०।।१।।
मुखसे कहता है पोथी, पर नीयत धनको रोती ।
ये दोष बडे हैं गंदे, मत लाग०।।२।।
था रंग रँगाया भारी, दाढीकी झलक नियारी ।
पर भुला लोभके छंदे, मत लाग०।।३।।
कहे तुकड्या सोच जरासा, यह तज विषयनकी आसा ।
भज गोविंदे गोविंदे मत लाग ०।।४।।