अगर तू जग वशी चाहता, सम्हालो इंद्रियाँ सारे

(तर्ज : मुझे क्या काम दुनियासे... )
अगर तू जग वशी चाहता, सम्हालो इंद्रियाँ सारे ।
सदा सम भाव रख अपने, न कर बूरा कभी प्यारे ! ।।टेक।।
द्रव्य किसिका लुबाडीसे, कभी भी हाथ नहि लेना ।
कभी परनारिसे प्रीती, लगाकर मत   फँसा   प्यारे ! ।।१।।
कहीं झूठा कपट करके, दगा किसिको नही देना ।
जबानी मीठि रख अपनी, जभी वश होत जन सारे ।।२।।
सिधी सादी रहन धरके, सभीके काम कर दिलसे ।
त्याग अभिमान मैं  - पनका, प्रभू भवधारसे    तारे ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, न बन आधीन व्यसनोंके ।
तभी जग जान ले अपना, कहे सो  मान   ले    तेरे ।।४।।