अपने को आप भुलके, हैरान हो रहा है

(तर्ज: ईश्वरको जान बंदे. .. )
अपने को आप भुलके, हैरान हो रहा है ।
रे नर ! अग्यानसे तु, दुख काहे भो रहा है ?।।टेक।।
मनके पिछे पडा और मनकी सुनी कहानी ।
मनके भगे भगेसे, सब काम खो  रहा   है ।।१।।
यह उम्र सब गमाई, आईभि संधि दौरी ।
विषयोंको सुख समझकर, जम -द्वारको सहा है ।।२।।
गुरूसंतका न माना, दुनियामें है दिवाना ।
बस योंहि उम्र खोकर, बदनाम कर रहा है ।।३।।
तुकड्या कहे सयाने ! सत्‌-संग कर हमेशा ।
बेडा यह पार होगा, निजमें समा   रहा   है ।।४।।