है अजब प्रभूकी माया ! नहि अंत उसीका
(तर्ज : अलमस्त पिलाया प्याला.... )
है अजब प्रभूकी माया ! नहि अंत उसीका पाया जी ।।टेक।।
कहाँ जात अरु कहाँ नात है ? पता न किसको आया ।
किस कारणसे बनाई दुनिया ? खबर नहीं कछु आया जी ।।१।।
मात पिताका पता न था जब, बेटा कहाँसे आया ?
आया किस कारणसे तनमें ? क्या संचित लखवायाजी ? ।।२।।
आतमसे चेतन जी किन्हा, जी से लिंग बनाया ।
सुख दुख दोनों लगे किसीको ? एकहि एक समाया जी ।।३।।
तुकड्यादास कहे ये बातें, क्या जाने बगुलीया ? ।
गुरु-किरपा जिंहि नरपर कीन्ही, उसिको समझ यह पायाजी ।।४।।