है वही बोध गुरुजीका, जिसे बढे ग्यान

(तर्ज : अलमस्त पिलाया प्याला....)
है वही बोध गुरुजीका, जिसे बढे ग्यान इस जी का जी ! ।।टेक।।
सत्य नाम मुख मंत्र रहे अरु, करे काज सब जी का ।
दुनिया ही मंदर कर समझे, करे प्रेम सबहीका जी ।।१।।
चलते, हलते, खाते पीते, सोते ध्यान उसीका ।
जाने दीन - रंककी सेवा, भेद न करे किसीका जी ।।२।।
ऊँचे ख्याल रखे अँखियनमों, साधुनके बचनोंका ।
निर्भय-पदकी लगाके धूनी, जला दिया घर मैं का जी ।।३।।
तुकड्यादास कहे सत्‌ क्या है ? है वह ग्यान गुरुका ।
आप - रूपकी करो पछानी, रटो रटन इस जीका जी ।।४।।