अजि ! खेचर मुद्रा लाग रही तनमों
(तर्ज : नीरंजन माला घटमें. . . )
अजि ! खेचर मुद्रा लाग रही तनमों ।।टेक।।
स्थीर करो मन बैठ संत-सँग, बोध सुनो मनमों ।
रहो जाय एकांत कुटीमें, हो ऊर्धव छनमों ।।१।।
लगाके तारी भ्रुकुटके तटपर, देख रहो उनमों ।
झिलमिल चमके अजबके तारे, दे रंग नैननमों ।।२।।
चाँद-सुरज बिन गिरे उजारा, पल-पल छनछनमों ।
खबर भुले बाहरकी तनसे, डोल रहे धुनमों ।।३।।
तुकड्यादास कहे बिन संगत, मौज नहीं इनमों ।
सद्गुरु मारग दीन्ह बतावे, तर जहि जीवनमों ।।४।।